दिल के आँगन में खेलते है कई रिश्ते ,
अपने तो होते ही है पराये भी आ बसते है इसमें ,
ये दिल मेरा नादान ,
सबको दे जगह है जाता आँगन में ,
जब शाम के किसी मोड़ में ,
बंद होते है ये खेल ,
पढता हूँ .... खुद के लिखे वो कुछ लफ्ज ,
याद आते है वो खेल ,
कुछ खट्टी ,कुछ मीठी यादें....
हँसा कर रुला जाती है पलकों को ,
फिर भूली बिखरी चीजों को ,
लिख जाता हूँ समेट कर ,
ना जाने मेरा यह खेल कब तक चलेगा ,
शायद जब तक ये साँस चलेगा ....!!!
- Pranjal
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